बहुत दिनों बाद एक भूले हुए एक दोस्त का ख़त मिला मैं अरसे तक उसे जेब में लिए घूमता रहा सोचता रहा कि कल बस कल ही लिख दूंगा उसका कोई प्यारा सा एक जवाब फिर मैं बार-बार भूलता रह और इस काम को याद करता रहा
एक दिन आखिर निकाल हीं लिया समय और लिख डाला ख़त खत के जवाब में ज्यादा यह लिखा कि क्यों और आखिर क्यों देर हुई खत के जवाब में फिर मैं ने उसे सहेज कर रखा अपनी जेब में कि उसे कल सुबह ही सबसे पहले कर दूंगा पोस्ट और फिर अरसे तक मैं उस खत को नहीं भेज सका
फिर देर होती गई और यह लगा कि बेकार और बेमानी है इतने दिनों बाद किसी खत का जवाब देना कितने दिन बाद यह जोडने की जहमत भी नहीं उठाते बनी अब बरसों बाद मेरे जेहन में टंगा है वह अनभेजा खत क्या करूं उस जवाब का जो मैंने खत में लिखा था और पता नहीं क्यों नहीं मिल सका मेरे दोस्त को मेरे चाहने के बावजूद।