कवि: राम विलास शर्मा
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चाँदी की झीनी चादर सी
फैली है वन पर चाँदनी
चाँदी का झूठा पानी है
यह माह पूस की चाँदनी
खेतों पर ओस-भरा कुहरा
कुहरे पर भीगी चाँदनी
आँखों के बादल से आँसू
हँसती है उन पर चाँदनी
दुख की दुनिया पर बुनती है
माया के सपने चाँदनी
मीठी मुसकान बिछाती है
भीगी पलकों पर चाँदनी
लोहे की हथकड़ियों-सा दुख
सपनों सी मीठी चाँदनी
लोहे से दुख को काटे क्या
सपनों-सी मीठी चाँदनी
यह चाँद चुरा कर लाया है
सूरज से अपनी चाँदनी
सूरज निकला अब चाँद कहाँ
छिप गई लाज से चाँदनी
दुख और कर्म का यह जीवन
वह चार दिनों की चाँदनी
यह कर्म सूर्य की ज्योति अमर
वाह अंधकार की चाँदनी