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संधान / राधावल्लभ त्रिपाठी

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क्या जुड़ सकती हैं चीज़ें
जो टूट गई थीं
मिट्टी का फ़्लावर पॉट
झाड़ू लगाते हुए
फ़र्श पर गिरा और टूट गया।
उसके टुकड़े गृहिणी ने स्टूल पर रख दिए
बहुत दिनों तक वे रखे रहे वहाँ
धरोहर की तरह।
जो कुछ लिखा था कग़ज़ों पर
वे काग़ज़ खो गए
ढूंढ़ने पर मिले नहीं
उनके खोने की बात भी बिसर गई
फिर भी बात कहीं थीं

अकेला विचरता भी आदमी
अलग नहीं हो सकता है
अपने एकान्त में भी वह कहीं से कहीं
जुड़ा ही रहा है सबसे
आकाश में उड़ता है पक्षी
मुदित होकर
फिर लौट आता है अपने जहाज़ पर

घूमता है कुम्हार का चाक
उस पर चलती है बेखटके चींटी
चाक के साथ घूमती भी और चलती अपनी गति से भी
चल रहा है समाज
चल रहा हूँ मैं भी।

कुछ टूट गया था
कुछ छूट गया था होकर टेढ़ा तिरछा
वह अचानक सीधा होकर जुड़ जाता है।