Last modified on 26 मई 2009, at 03:51

कुछ क़ाज़ियों के बीच ही / अश्वघोष

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:51, 26 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वघोष |संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष }}[[Category:गज़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ क़ाज़ियों के बीच में मुर्ग़ी हलाल है।
बस ये हमारे देश की ज़िन्दा मिसाल है।

चीलें मिलेंगी पेट को बिल्कुल भरे हुए,
पर आदमी को देखिए वो तंग हाल है।

क्यों भेड़ियों का राज है संसद के सहन में,
ज़हनों में आज सबके यही एक सवाल है।

यूँ तो सज़ा के गाँव को वो घर में खुश हुए,
लगता है जैसे गाँव तो अब भी बवाल है।

बदलेगा ये निज़ाम भी बदलेगा एक दिन,
वो दिन नहीं है दूर ये मेरा ख़याल है।