मँजुल मँजरी पँजरी सी ह्वै मनोज के ओज सम्हारत चीरन ।
भूँख न प्यास न नीँद परै परी प्रेम अजीरन के जुर जीरन ।
देव घरी पल जाति घुरी अँसुवान के नीर उसास समीरन ।
आहन जाति अहीर अहे तुम्है कान्ह कहा कहौँ काहू की पीरन ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।