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पहचान / कुमार विकल

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यह जो सडक पर खून बह रहा है
इसे सूंघकर तो देखो
और पहचानने की कोशिश करो
यह हिंदू का है या मुसलमान का
किसी सिख का या ईसाई का,किसी बहन का या
भाई का

सडक पर इधर-उधर पडे पत्थर के बीच दबे
टिफिन कैरियर से जो रोटी की गंध आ रही है
वह किस जा‍ति की है

क्या तुम मुझे बता सकते हो
इन रक्त सने कपडों,फटे जूतों,टूटी साइकिलों
किताबों और खिलौनों की कौम क्या है

क्या तुम बता सकते हो
स्कूल से कभी न लौटने वाली बच्ची की प्रतीक्षा में खडी
माँ के आँसुओं का धर्म क्‍या है
और हस्पताल में दाखिल
जख़्मियों की चीख़ों का मर्म क्या है

हाँ मैं बता सकता हूँ,यह ख़ून उस आदमी का है
जिसके टिफ़िन में बंद रोटी की गंध उस जाति की है
जो घर और दफ़्तर के बीच साइकिल चलाती है
और जिसके सपनों की उम्र फाइलों में बीत जाती है

ये रक्त सने कपडे उस आदमी के हैं
जिसके हाथ मिलों का कपडा बनाते हैं
कारखानों में जूते बनाते हैं,खेतों में बीज डालते हैं
पुस्तकें लिखते हैं,खिलौने बनाते हैं
और शहरों की अंधेरी सड़कों के लैंपपोस्ट जलाते हैं

लैंपपोस्ट तो मैं भी जला सकता हूँ लेकिन
स्कूल से कभी न लौटने वाली बच्ची की
माँ के आँसुओं का धर्म नहीं बता सकता
जैसे जख़्मियों के घावों पर
मरहम तो लगा सकता हूँ
लेकिन उनकी चीख़ों का मर्म नहीं बता सकता।