When I am finalising the poem, the blank spaces in the poem do not synchronise. The poem is published in sameline. Can I get any help? |रचनाकार=कविता वाचक्नवी नागयज्ञ
जो हमारी धड़कनों की गति समझने में रहे असफल उन्हें क्या ज्ञात है - स्फोट में ही प्राण अपने जागते हैं।
दहकते चोले बसंती हैं नहीं वैराग्य-भर को, तक्षकों के प्राण लेने को लपकती ये भभकती अग्नि की झर-झर शिखाएँ हैं, हमारी देह-मन में दहकती हैं श्वास पीकर और भी फुंकारती हैं।
अब कपालों का करेंगे खूब मोचन वेदियाँ हुँकारती हैं।