Last modified on 6 जून 2009, at 16:35

समय / कविता वाचक्नवी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:35, 6 जून 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

समय
बरसात के पानी में मिल
मटिया गया
किसी गढ्ढे में,
दिन-रात
जम गए काँच पर
धुँध बनकर
उंगलियों ने नाम
लिखे होंगे बहुत
कभी रेत पर
काँच पर कभी।