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आधी फसल / कविता वाचक्नवी

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आधी फसल


हमारे पेड़ों से
कच्चे आम
बटोर ले जाता है
अद्‌धे वाला ठेकेदार
और तकते रह जाते हैं - हम
पके आमों की
तीखी महक
याद करते हुए.......बस।

जितने छोड़ता है हमारे लिए
उनमें आती नहीं सुगंध - ,
अधकचे टूटे
यही है फल।

इस सुगंधहीन
आधी फसल से
भरता नहीं
मेरा जी
और
नंगे हो गए हैं
मेरे पेड़ भी........।