Last modified on 7 जून 2009, at 16:52

मुसलसल बेकली दिल को रही है / नासिर काज़मी

हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:52, 7 जून 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुसलसल बेकली दिल को रही है
मगर जीने की सूरत तो रही है

मैं क्यूँ फिरता हूँ तन्हा मारा-मारा
ये बस्ती चैन से क्यों सो रही है

चल दिल से उम्मीदों के मुसाफ़िर
ये नगरी आज ख़ाली हो रही है

न समझो तुम इसे शोर-ए-बहाराँ
ख़िज़ाँ पत्तों में छुप के रो रही है

हमारे घर की दीवारों पे "नासिर"
उदासी बाल खोले सो रही है