Last modified on 15 जून 2009, at 20:24

सुरत सुखद सम अति अरसाने अँग / राजहँस

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:24, 15 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजहँस }} <poem> सुरत सुखद सम अति अरसाने अँग , आनन अनू...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुरत सुखद सम अति अरसाने अँग ,
आनन अनूप सोनजूही छवि छावै है ।
अमल रसाल सम युगल उरोज पर ,
अधिक अधिक स्यामताई सरसावै है ।
राजहँस नित निज रूपहिँ बढ़ाय लँक ,
तन मन बैन की चपलता हटावै है ।
रवि छवि वारी वर उषा सी रुचिर बाल ,
गरभ समेत प्यारी काको न सुहावै है ।


राजहँस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।