Last modified on 15 जून 2009, at 21:59

लाल रँगवारे घेरदार घाँघरे सोँ घिरे / मानस

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:59, 15 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मानस }} <poem> लाल रँगवारे घेरदार घाँघरे सोँ घिरे , न...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लाल रँगवारे घेरदार घाँघरे सोँ घिरे ,
नेक ना उघारे भारे सुखमा समूल हैं ।
जग जीत वारे पति प्रीति रीति वारे केधौँ ,
काम के नगारे उलटारे झपे झूल हैँ ।
उपमा अतूल पाय छोड़ि मति भूल बैन ,
मनसा कहे ते करैं कबिन कबूल हैँ ।
निरखे नितंब नीके वा नितंबनी के मानों ,
जंघ जुग कदली के थंभ भूल मूल हैं ।

मानस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।