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दो छन्द / राजुल मेहरोत्रा

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भाव नही भाषा नही कल्पना की आशा नही
टूटे फ़ूटे शब्द मेरे काव्य को सवाँर दो,
नित नई धारा बहे काव्य की कला की मन्जु
मेरी बाल लेखनी की गति को सुधार दो,
नये नये रस भरे क़विता कलश मे जो
मातु वीणापाणि मन्द मति को निखार दो,
गूँजे कोने कोने मे जो मुग्ध करे लोक सभी
राजुल की रसना पे जादू सा उतार दो ।


नव प्रेम की ज्योति जगाओ प्रभु
हियाँ रैन ठनी है सवेरो करौ,
पद छाप से छापौ गुमान सिला
पग कँटक जानि के हेरो करौ,
मृग कन्चन से सब दोसन कौ
शुचि भक्ति के बान लै घेरो करौ,
मन मेरो करौ रुचि पँचवटी
मेरे राम यहीँ पे बसेरौ करौ ।