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चुनौती / महमूद दरवेश

तुम मुझे चारों तरफ़ से बांध दो

छीन लो मेरी पुस्तकें और चुरूट

मेरा मुँह धूल से भर दो

कविता मेरे धड़कते हृदय का रक्त है

मेरी रोटी का खारापन

मेरी आँखों का तरलता


यह लिखी जाएगी नाख़ूनों से

आँखॊं के कोटरों से, छुरों से

मैं इसे गाऊंगा

अपनी क़ैद-कोठरी में, स्नानघर में

अस्तबल में, चाबुक के नीचे

हथकड़ियों के बीच, जंज़ीरों में फँसा हुआ

लाखों बुलबुलें मेरे भीतर हैं

मैं गाऊंगा

गाऊंगा मैं

अपने संघर्ष के गीत