Last modified on 24 जून 2009, at 02:37

योग / गिरधर राठी

रहस द्वार पर

तनी मुट्ठियाँ

कवच टूटते

रोग-भोग में।


सहज। बावले।

थिर। उतावले।

दीवानेपन

मृत्यु-भोज में।


तपते सैकत

हिमशीतल कण

अचल विकल क्षण

उत्स-खोज में।


अगम-सुगम पथ

निरत-सुरत रथ

क्षर-अक्षर व्रत

योग-योग में।