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माया / अनातोली परपरा

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»  माया

नींद में मुझे लगा कि ज्यूँ आवाज़ दी किसी ने

मैं चौंक कर उठ बैठा और आँख खोल दी मैंने

चकाचौंध रोशनी फैली थी औ' कमरा था गतिमान

मैं उड़ रहा था महाशून्य में जैसे कोई नभयान


मैं तैर रहा था वायुसागर में अदृश्य औ' अविराम

आसपास नहीं था मेरे तब एक भी इन्सान


किसकी यह आवाज़ थी, किसने मुझे बुलाया

इतनी गहरी नींद से, भला, किसने मुझे जगाया

क्या सचमुच में घटा था कुछ या सपना कोई आया

कैसी अनुभूति थी यह, कवि, कैसी थी यह माया ?