नभ में चौकडियां भरें भले
शिशु घन-कुरंग
खिलवाड़ देर तक करें भले
शिशु घन-कुरंग
लो, आपस में गुथ गये खूब
शिशु घन-कुरंग
लो, घटा जल में गये डूब
शिशु घन-कुरंग
लो, बूंदें पडने लगीं, वाह
शिशु घन-कुरंग
लो, कब की सुधियाँ जगीं, आह
शिशु घन-कुरंग
पुरवा सिह्की, फिर दीख गये
शिशु घन-कुरंग
शशि से शरमाना सीख गये
शिशु घन-कुरंग
१९६४ में लिखित