जब हम कगार पर होते हैं
बिल्कुल गिरने वाले निराश होने से
ऐन पहले
कैसे हम सिर उठा लेते हैं
दुबारा बुलडोज़र के नीचे से फिर
निकल आती है जिज्ञासा जीवित
फिर उठते हैं सवाल
दुखों में कोई कटौती किए बिना
हम पसीना पोंछ लेते हैं और आँसू
पीठ फेरकर कुछ याद करते हैं
क्या है जो हम भूल गए हैं
फिर भी साथ है।