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दाँव-पेंच में / शील

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तीन दशक बीते, घट रीते के रीते रहे
घाले रहे शासक, कुचक्र ऐंच-खेंच में।
वाह री स्वतन्त्रता, फूले-फले छल-फरेब
लानत-हविश, शेखी-सूरत की हेच में,
केंचुए करोच रहे संसद की राजनीति
लगा रहे अनतुले सदाचार बेच में।
गांधी और नेहरू की दुही गई बूढ़ी भैंस
दलदल में धँसी, फँसी है दाँव-पेंच में।