वोह जिबह करके यह कहते हैं मेरी लाश से-।
"तड़प रहा है कि मुँह देखता है तू मेरा॥
कराहने में मुझे उज़्र क्या मगर ऐ दर्द।
गला दबाती है रह-रह के आबरू मेरा॥
कहाँ किसी में यह क़ुदरत सिवाय तेग़े-निगाह।
कि हो नियाम में और काट ले गुलू मेरा॥
इसे कहते हैं खूबी हम तो इस खूबी के क़ायल हैं।
हुआ जब ज़िक्र यकताई का, नाम आया वहीं तेरा॥
बहुत सरगोशियाँ<ref>कानाफूसी</ref> करने लगे रस्ते में अब रहबर<ref>पथ-प्रदर्शक</ref>!
बहुत चर्चा है बाज़ारों में ऐ ख़िलवतनशीं<ref>एकांत में रहनेवाले</ref> तेरा॥
शब्दार्थ
<references/>