Last modified on 2 जुलाई 2009, at 19:33

प्रतिशोध / मैथिलीशरण गुप्त

Pramendra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:33, 2 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: किसी जन ने किसी से क्लेश पाया नबी के पास वह अभियोग लाया। मुझे आज्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

किसी जन ने किसी से क्लेश पाया

नबी के पास वह अभियोग लाया।

मुझे आज्ञा मिले प्रतिशोध लूँ मैं।

नही निःशक्त वा निर्बोध हूँ मैं।

उन्होंने शांत कर उसको कहा यों

स्वजन मेरे न आतुर हो अहा यों।

चले भी तो कहाँ तुम वैर लेने

स्वयं भी घात पाकर घात देने

क्षमा कर दो उसे मैं तो कहूँगा

तुम्हारे शील का साक्षी रहूँगा

दिखावो बंधु क्रम विक्रम नया तुम

यहाँ देकर वहाँ पाओ दया तुम।