Last modified on 3 जुलाई 2009, at 18:22

दरमियाँ / अभिज्ञात

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:22, 3 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिज्ञात }} <poem> अभी तो दरमियाँ फ़ासलो के जंगल है अ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अभी तो दरमियाँ फ़ासलो के जंगल है
अभी आगाज़ से पहले भी कई मुश्किल है

अपनी हर हाल में मर जाने की तमन्ना है
मिले ये चैन कि अपना-सा कोई क़ातिल है

एक हम हैं कि कभी वास्ता नही रखते
कि अपने सामने मायूस अपनी मंज़िल है