Last modified on 4 जुलाई 2009, at 02:27

नई सुबह / किरण मल्होत्रा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:27, 4 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण मल्होत्रा }} <poem> पलकों पर सजे सुनहरे सपने प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पलकों पर
सजे सुनहरे सपने
पत्तों पर
गिरे चमकीले मोती
चांदनी पर
खिले सफ़ेद फूल
हमें बताते हैं
हमारी भूल

ये सब
बिखर जाते हैं
कुछ पल में
विचार नहीं बदलते
जीवन-भर

जीवन नदी है
कहीं नहीं रूकती
चाँद-सूरज
कभी नहीं थकते
जैसे रूका पानी
असहनीय हो जाता है
वैसे रूके विचार
अमानवीय हो जाते हैं

विचारों को
सपनों की तरह
टूटने दो
मोतियों की तरह
बिखरने दो
फूलों की तरह
झरने दो

तभी हमें
अहसास हो पाएगा
एक नई सुबह का