Last modified on 4 जुलाई 2009, at 21:36

सुबह / संध्या गुप्ता

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:36, 4 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संध्या गुप्ता }} <poem> सूर्य का गोला आसमान पे उजले ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सूर्य का गोला आसमान पे उजले रंग से लिखता है -
सुबह
और चमक उठती हैं इस धरती पर जल की तरंगें
जीवन के रंगों से भर कर

तरोताज़ा हो उठती है हवा किरणों से नहा-धोकर
हल-बैल लिये किसान उतर पड़ते हैं खेतों में
नई उमंग के साथ नई फसल बोने को

निकल पड़ती हैं चींटियाँ अपने बिलों से कतारबद्ध
अपने गंतव्य की ओर ...और
परिन्दे कभी नहीं ठहरते अपने घोंसलों में
सुबह होने के बाद

...लेकिन मित्रो !
अफसोस! कि इधर बहुत दिनों से
सुबह नहीं हुई!

बेहद ज़रूरी है सुबह का होना
एक लम्बी काली रात के बाद

इन्तज़ार है धान को ओस का
और ओस को एक सुबह का...!!