Last modified on 13 जुलाई 2009, at 01:17

ढीठ चांदनी / धर्मवीर भारती

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:17, 13 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धर्मवीर भारती |संग्रह= }} <poem> आज-कल तमाम रात चांदन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज-कल तमाम रात
चांदनी जगाती है

मुँह पर दे-दे छींटे
अधखुले झरोखे से
अन्दर आ जाती है
दबे पाँव धोखे से

माथा छू
निंदिया उचटाती है
बाहर ले जाती है
घंटो बतियाती है
ठंडी-ठंडी छत पर
लिपट-लिपट जाती है
विह्वल मामाती है
बावरिया बिना बात?

आजकल तमाम रात
चांअनी जगाती है