हम लोग एक ऐसे शहर में रह रहे हैं
जहाँ इमारतों का रंग भूरा हो गया है
और उनका स्थापत्य बदल गया है
उन इमारतों में ही रोज़ कोई न कोई छिप रहा है
फिर अपनी आत्मा तक बेच रहा है
यह सही है कि शहर के लोग भूलते जा रहे हैं
एक-दूसरे का नाम
वे तेज़ी से चल रहे हैं सड़कों पर
एक दूसरे को धकियाते
एक कोने में शरीफ़ लोग
हर फीकी चीज़ पर
अपना रंग छिड़क रहे हैं
और भूरे रंग को
शहर से मिटाने की कोशिश कर रहे हैं