आत्मा-वात्मा थी ही नहीं कभी
सांड रहे हर-हमेश अनुभव किए बिना, कभी भी, कभी उसकी
निकम्मी फंतासी है आत्मा
पेट में तो खोजी ही नहीं जा सकती वह,
और गर कोई उसको सत्य सिद्ध भी कर दे
अण्ड-बण्ड गोली भी छूमन्तर कर देगी उसे,
फिर नज़र आएंगी आत्माएँ
उभरती अन्तहीन प्रवाह में