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ज्वारित मन:स्थितियां / इला कुमार

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धुंध की चादर फटती है

नि:शब्द

रोमकूपों को झनझनाती हुयी एक चकाचौंध

दूर-दूर तक निर्मल आकाश,

नीले रंग की चमक में डूबते उतराते करोडों करोड़

सितारे

चकमक चकमक, चांदनी


ज्वरित मन:स्थितियों का तनाव

व्यथित घड़ियों के बीच से

एक बीमार चेहरा उभरता है,

पीला सा,


थोडी देर यूं ही टकटकी लगाये देखता है,

मैं बेतरतीब उग आये कांटो के असहज तनाव को

झेलती,


रो देती हूं

एक युग बीत गया था,

पता नहीं क्या बीत गया,

अचानक,

खुशनुमा रोशनी के साथ चेहरे का पीलापन धुल गया,


पलटकर देखने से सौ मुस्कुराहटों में डूबा

गुलाबी आभा में दमकता,

चेहरा

हर गम भूलकर मैं बेतहाशा मुस्करा उठती हूं