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अनमने दिन / अनिल जनविजय

दिन बीते रीते-रीते इन सूनी राहों पे

मिला न कोई राही बना न कोई साथी वन सूखे चाहों के

याद न कोई आता न मन को कोई भाता घेरे खाली हैं बाहों के

कलप रहा है तन जैसे भू-अगन दिन आए फिर कराहों के


(रचनाकाल : 2005) </Poem>