रसनिधि का मूल नाम पृथ्वीसिंह है। ये दतिया राज्य के रहने वाले जमींदार थे। रसनिधि का महत्वपूर्ण ग्रंथ है- 'रतन-हजारा। इसकी रचना केवल दोहों में हुई है, जिनमें बिहारी जैसी सूक्ष्म भाव-व्यंजना है। भाषा पर कहीं-कहीं फारसी का प्रभाव है। इनके काव्य में रसात्मकता अधिक है। इनका उक्ति-वैचित्र्य भी सराहनीय है।