दरिया साहब बिहार के आरा जिले के रहने वाले थे। इनके पिता ने धर्म बदल लिया था और पृथुदास से पीरनशाह बन गए थे। दरिया साहब बचपन से ही विरक्त थे और 15 वर्ष की आयु में पत्नी को छोडकर साधु हो गए थे। शीघ्र ही इन्होंने आत्मानुभूति प्राप्त की थी। इनके नाम से 'दरिया पंथ चला, जिसकी इन्होंने पाँच गद्दियाँ स्थापित कीं। इनकी दो पुस्तकें प्राप्त हैं- 'दरिया सागर और 'ज्ञान दीपक। इन्होंने कबीर की भाँति सामाजिक ढकोसलों पर प्रहार किया तथा नम्रता, सरलता और दीनता से रहकर, नश्वर संसार में अविनश्वर को प्राप्त करने की सीख दी। इनके पद एवं साखी भी सरल भाषा में ज्ञान एवं भगवत् प्रेम के गूढ तत्वों को व्यक्त कर देते हैं।