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सिहरता आकाश / नंदकिशोर आचार्य
अनिल जनविजय
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कवि का कोई घर नहीं होता
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अंधेरा ओढ़ कर
सोए हुए उसकी
औचक उड़ाती नींद
कुरजाँ गुज़र जाती है
अभी तक सिहरता है आकाश।