Last modified on 22 अगस्त 2009, at 03:47

सुगुन सुग्गा / सरोज परमार

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:47, 22 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज परमार |संग्रह= घर सुख और आदमी / सरोज परमार }} [[C...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस आँगन से उस आँगन तक
इठलाता,गाता,चुगता चुग्गा ।
पँख पसारने का छल करता सा
लो! उड़ गया सुगुन सुग्गा !
इस आँग से उस आँगन तक
कोच भरी है
विष्ठा पसरी है
किवाड़ों ने हँसते रोते बसा लिया है
चिमगादड़ की जोड़ी को
जो स्याह रातों में
इस आँगन से उस आँगन तक
मंडरा-मंडरा,टकरा-टकरा
उल्टा लटक जाती है
सूरज उगने से पहले ।