Last modified on 23 अगस्त 2009, at 02:43

माल रोड़ / सुदर्शन वशिष्ठ

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:43, 23 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक

कहाँ है माल रोड़
सैलानी पूछते
जहाँ घूमते अंग्रेज़ शान से
जहाँ नहीं आ सकते कुत्ते और भारतीय
वह माल रोड़ कहाँ है।
जहाँ रिक्शे में बैठतीं अंग्रेज़ी मेमें छाता ओढ़े
भारतीय दौड़ते पगड़ी संभाले
वह माल रोड़ कहाँ है
जहाँ मनाही थी थूकने की, मूतने की
जलसे जुलूस की
भारतीय उसूल की
वह मालरोड़ कहाँ है !

दो

अब भी है माल रोड़
जमी नदी की तरह
तभी पूछते हैं सैलानी माल रोड़ का पता
जहां घूमते लोग इधर से उधर बेमतलब
जहाँ सौफ्टी खातीं बुढ़ियाएँ
बच्चे देखते हैं
जहाँ सरपट भागतीं माएँ
बच्चे रोते हैं
जहाँ नहीं आ सकतीं गाएँ
बन्दर झूमते हैं
जहाँ नहीं आ सकते मज़दूर
कुत्ते घूमते हैं।