Last modified on 24 अगस्त 2009, at 18:07

सुबह / नचिकेता

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:07, 24 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


रोशनी के नए झरने

लगे धरती पर उतरने


क्षितिज के तट पर धरा है

ज्योति का जीवित घड़ा है

लगा घर-घर में नए

उल्लास का सागर उमड़ने


घना कोहरा दूर भागे

गाँव जागे, खेत जागे

पक्षियों का यूथ निकला

ज़िंदगी की खोज करने


धूप निकली, कली चटकी

चल पड़ी हर साँस अटकी

लगीं घर-दीवार पर फिर

चाह की छवियाँ उभरने


चलो, हम भी गुनगुनाएँ

हाथ की ताकत जगाएँ

खिले फूलों की किलक से

चलो, माँ की गोद भरने