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क्या हुआ हुस्न है हमसफ़र या नहीं / ख़ुमार बाराबंकवी

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क्या हुआ हुस्न हमसफ़र है या नहीं
इश्क मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं

गम छुपाने से छुप जाए ऐसा नहीं
बेख़बर तूने आईना देखा नहीं

दो परिंदे उड़े आँख नम हो गई
आज समझा के मैं तुझको भूला नहीं

अहल-ऐ-मंजिल अभी से न मुझ पर हँसो
पाँव टूटे हैं दिल मेरा टूटा नहीं

तरक-ऐ-मय को अभी दिन ही कितने हुए
और कुछ कहा मय को जाहिद तो अच्छा नहीं

छोड़ भी दे अब मेरा साथ ऐ ज़िन्दगी
मुझ को नदामत है तुझ से शिकवा नहीं

तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'खुमार '
तुझ को रहमत पर शायद भरोसा नहीं