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भागो / इब्बार रब्बी

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दुनिया के बच्चो
बचो और भागो
वे पीछे पड़े हैं तुम्हारी
खाल खींचने को
हड्डियाँ नोचने को

बड़े तुम्हें घेर रहे हैं
हीरे की तरह जड़ रहे हैं
ठोक-पीट कर कविता में

बच्चो, पेड़, चिड़ियो
रोटी और पहाड़ो
भागो
क्रान्ति तुम छिपो
हिन्दी के कवि आ रहे हैं
काग़ज़ और क़लम की सेना लिए
भागो जहाँ हो सके छिपो।


रचनाकाल : 21.04.1981