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क्रांति का जयजयकार / कुसुमाग्रज

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भारतमें १९४२ की क्रान्ति के समय मरठी में यह गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ था। उस का हिंदी रूपांतरण करने के इस प्रयास में जहाँ तक हो सके, कवि के मूल शब्दों का ही उपयोग किया है।
 

 
गरजो जय-जयकार क्रान्ति का, गरजो जय-जयकार
और छाती पर झेलो वज्रों के प्रहार
 
खलखल करने दो शृंखलाएँ हाथों-पावों में
फ़ौलाद की क्या गिनती, मृत्यु के दरवाज़ों में
सर्पो! कस लो, कस लो, तुम्हारे भरसक पाश
टूटे प्रकोष्ठ, फिर भी टूटेगा नहीं कभी आवेश
तड़िघात से क्या टूटता है तारों का संभार?
कभी यह तारों का संभार? गरजो जय-जयकार
 
क्रुद्ध भूख भले मचाए पेट में तूफ़ान
कुतरने दो ताँतों को, करने रक्त का पान
संहारक कलि! तुझे बलि हैं देते आव्हान
बलशाली मरण से बलवान हमारा अभिमान
मृत्युंजय हम, हमें क्या हैं कारागार?
अजी, क्या हैं कारागार? गरजो जय-जयकार
 
क़दम क़दम पे फैल अंगारे अपने हाथों से
हो के बेख़ुद दौड़ते हैं हम अपने ध्येयपथ पे
रुके नहीं विश्रांति को, देखा नहीं कभी पीछे
बांध सके नहीं हमें प्रीति या कीर्ति के धागे
एक ही तारा सन्मुख और पाँव तले अँगार
हाँ था पाँव तले अँगार! गरजो जय-जयकार
 
हे साँसो! तुम जाओ वायु संग लांघ यह दीवार
कह दो माँ से हृदय में हैं जो जज़्बात
कहो कि पागल तेरे बच्चे इस अंधियारे से
बद्ध करों से करते हैं तुम्हें अंतिम प्रणिपात
मुक्ति की तेरी उन को थी दीवानगी अनिवार
उन को थी दीवानगी अनिवार, गरजो जय-जयकार
 
फहराते तेरे ध्वज बंध गए हाथ शृंखला में
यश के तेरे पवाड़े गाते आए फन्दे गले में
देते जो जीवन अर्घ्य तो कहलाए दीवाने
माँ दीवानों को दोगी न तेरी गोद का आधार?
माँ तेरी गोद का आधार? गरजो जय-जयकार
 
क्यों भिगोती हो आँखें, उज्ज्वल है तेरा भाल
रात्रि के गर्भ में नहीं क्या कल का उषःकाल?
चिता में जब जल जाएंगे कलेवर ये हमारे
ज्वालाओं से उपजेंगे नेता भावी क्रांति के
लोहदण्ड तेरे पावों टूटेंगे खन-खनकर
हाँ माँ! टूटेंगे खन-खनकर, गरजो जय-जयकार
 
ओंकार! अब करो ताण्डव लेने को ग्रास
नर्तन करते पहन लिए हैं गले में पाश
आने दो लूटने रक्त और माँस गिद्धों को क्रूर
देखो-देखो खुला कर दिया है हम ने अपना उर
शरीरों का इन करो अब तुम सुखेनैव संहार
मृत्यो! करो सुखेनैव संहार! गरजो जय-जयकार
 
गरजो जय-जयकार क्रान्ति का गरजो जय-जयकार
                         
मूल मराठी से अनुवाद : सीताराम चंदावरकर