Last modified on 4 सितम्बर 2009, at 22:49

सदृश / मनोज कुमार झा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:49, 4 सितम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


वे भाई की हत्या कर मंत्री बने थे
चमचे इसे भी कुर्बानियों में गिनते हैं।
विपन्नों की भाषा में जो लहू का लवण होता है
उसे काछकर छींटा पूरे जवार में
फसल अच्छी हुई।

कवि जी ने गरीब गोतिया के घर से उखाडा था खम्भा-बरेरा
बहुत सगुनिया हुई सीढी
कवि जी गए बहुत ऊपर और बच्चा गया अमरीका।

गद्‍गद्‍ कवि जी गुदगुद सोफे पर बैठे थे
जम्‍हाई लेते मंत्री जी ने बयान दिया - वक़्त बहुत मुश्किल है
कविता सुनाओगे या दारू पिओगे।