लेखक: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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कुछ न हुआ, न हो। मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो! मेरे नभ के बादल यदि न कटे- चन्द्र रह गया ढका, तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे ले गगन-भास का, रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम हाथ यदि गहो। बहु रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा मन्द सबों ने कहा, मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा ज्ञान जहाँ का रहा, रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम कथा यदि कहो।