Last modified on 16 सितम्बर 2009, at 11:11

जब-तब / अशोक वाजपेयी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:11, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक वाजपेयी |संग्रह=कुछ रफ़ू कुछ थिगड़े / अशोक ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब-तब

जब सारे अपमान झर गए
जब मुरझा गईं सारी इच्छाएँ,
जब गली में आगे जाने की जगह न रही—
तब वह उदारचरित देवता आया
बीत गए जीवन की गाथा से
कुछ चरित्र, कुछ घटनाएँ वापस लाकर
उनकी धूल-मैल साफ़ कर
उन्हें उपहारों की तरह उजला बनाते हुए।