गज़ल
लम्हा लम्हा गुज़र रहा है नशा उम्र का उतर रहा है
हयात लम्बी भी चाहता है दुआए मरने की कर रहा है
न जाने क्या कह दिया किसी ने ? वो अपने ही पर कतर रहा है
यही जिन्दगी का फलसफ़ा है जो मेरी आन्खो से झर रह है
"सुभाश" टूटा कभी का लेकिन जमी पे अब तक बिखर रहा है
सुभाश वर्मा रुद्रपुर