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आज़ादी / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

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सबसे कठिन है आज़ाद होने की घोषणा करना
आज़ाद हो जाना आदमी की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है
आज़ादी माँगना सबसे बड़े भय का सामना करना है
जब हवाएँ सबको एक तरफ़ बहा ले जा रही हो

लोग प्रयत्नों के तिनके छोड़ कर
अपने खाली हाथों को लहराने लगें
तब कठिन हो जाता है आज़ादी की पलांध बताना
जब गुलामी को आज़ादी का नाम दिया जा चुका हो
ज़रूरत होती है आज़ादी को पहचानना

अपनी आज़ादी की घोषणा
दुनिया की सबसे बड़ी कीमत चुकाने की शुरुआत है
ये शुरुआत किसी भी क्षण की जा सकती है