Last modified on 19 सितम्बर 2009, at 09:52

झूमती हैं डालियां पुरवाईयों में / प्राण शर्मा

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:52, 19 सितम्बर 2009 का अवतरण ()

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झूमती हैं डालियाँ पुरवाईयों में
क्यों न कूकें कोयलें अमराईयों में

जिंदगानी को बिताएं सादगी से
क्या रखा है दोस्तो चतुराईयों में

जी में आता है कि सुनता ही रहूँ मैं
डूबा हूँ कुछ इस तरह शहनाईयों में

इम्तिहान उनका न लो ऐ दोस्तो तुम
जी रहे हैं लोग जो कठिनाईयों में

ढूँढ लाते हैं वहां से भी बहुत कुछ
जाते हैं जो झील की गहराईयों में