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अनुरोध / महादेवी वर्मा

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इस में अतीत सुलझाता
अपने आँसू की लड़ियाँ,
इसमें असीम गिनता है
वे मधुमासों की घड़ियाँ;

इस अंचल में चित्रित हैं
भूली जीवन की हारें,
उनकी छलनामय छाया
मेरी अनन्त मनुहारें।

वे निर्धन के दीपक सी
बुझती सी मूक व्यथायें,
प्राणों की चित्रपटी में
आँकी सी करुण कथायें;

मेरे अन्नत जीवन का
वह मतवाला बालकपन,
इस में थककर सोता है
लेकर अपना चंचल मन।

ठहरो बेसुध पीड़ा को
मेरी न कहीं छू लेना!
जबतक वे आ न जगावें
बस सोती रहने देना!!