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याद तुम्हारी / माहेश्वर तिवारी

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याद तुम्हारी जैसे कोई
कंचन-कलश भरे।
जैसे कोई किरन अकेली
पर्वत पार करे।

लौट रही गायों के
संग-संग
याद तुम्हारी आती
और धूल के
संग-संग
मेरे माथे को छू जाती
दर्पण में अपनी ही छाया-सी
रह-रह उभरे,
जैसे कोई हंस अकेला
आंगन में उतरे।

जब इकला कपोत का
जोड़ा
कंगनी पर आ जाए
दूर चिनारों के
वन से
कोई वंशी स्वर आए
सो जाता सूखी टहनी पर
अपने अधर धरे
लगता जैसे रीते घट से
कोई प्यास हरे।