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कविता / अब्दुल्ला पेसिऊ

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कविता
एक उश्रृंखल स्त्री है
और मैं उसके प्रेम में दीवाना
 
सौगंध तो रोज़ रोज़
आने की खाती है
पर आती है कभी-कभार ही

या बिल्कुल आती ही नहीं
कई बार।