Last modified on 30 सितम्बर 2009, at 07:43

मुआवजा / राजीव रंजन प्रसाद

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:43, 30 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: '''मुआवजा''' <br /> <br /> जो भी अभियान है,<br /> एक दूकान है<br /> जैसे कोई अधेड़न लि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुआवजा

जो भी अभियान है,
एक दूकान है
जैसे कोई अधेड़न लिपिस्टिक लपेटे
लबों पर खिलाती हो मुर्दा हँसी
तुम हँसे वो फँसी।

मैं फरेबों में जीते हुए थक गया
शाख में उलटे लटक पक गया
जिनके चेहरों में दिखते थे लब्बो-लुआब
मुझको दे कर के उल्लू कहते हैं वो
सीधा करो जनाब
ख़्वाब सारे तो हैं झुनझुने थाम लो
ले के भोंपू जरा टीम लो टाम लो
बिक सको तो खुशी से कहो, दाम लो
मर सको तो सुकूं से मरो, जाम लो
जो करो एक भरम हो जो जीता रहे
जीत अपनी ही हो, हाथ गीता रहे

रेत के हों, महल उसकी बुनियाद क्या?
पंख खोकर के तोते हैं आज़ाद क्या?
जा के नापो फकीरे सड़क दर सड़क
मैं छिपा कर के जेबों के पैबंद को
यूं जमीं मे गड़ा, सुनता फरियाद क्या?
मैं पहाड़ी नदी से मिला था मगर
उसकी मैदान से दोस्ती हो गयी
मैं किनारे की बालू में टूटा हुआ
सोचता हूँ कि जिनके लुटे होंगे मन
उनको भी मिलते होंगे मुआवजे क्या?