Last modified on 6 अक्टूबर 2009, at 08:34

आप की हँसी / रघुवीर सहाय

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:34, 6 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: निर्धन जनता का शोषण है<br /> कह कर आप हँसे<br /> लोकतंत्र का अंतिम क्षण ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारो ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे