Last modified on 6 अक्टूबर 2009, at 10:22

तुम्हारा चित्र / माखनलाल चतुर्वेदी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:22, 6 अक्टूबर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया
कुछ नीले कुछ श्वेत गगन पर
हरे-हरे घन श्यामल वन पर
द्रुत असीम उद्दण्ड पवन पर
चुम्बन आज पवित्र बन गया,
मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया।

तुम आए, बोले, तुम खेले
दिवस-रात्रि बांहों पर झेले
साँसों में तूफान सकेले
जो ऊगा वह मित्र बन गया,
मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया।

ये टिमटिम-पंथी ये तारे
पहरन मोती जड़े तुम्हारे
विस्तृत! तुम जीते हम हारे!
चाँद साथ सौमित्र बन गया।
मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया।